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आजादी के 75 साल बाद भी हरियाणा पुलिस में अंग्रेजो के जमाने का कानून है, न कोई अपील न दलील

अंग्रेजों के जमाने में बना एक ऐसा कानून है, जिसमें पुलिस कर्मचारी को न दलील देने की इजाजत है और न ही अपील करने की अनुमति है। देश को आजाद हुए 75 साल हो चुके हैं, लेकिन कर्मचारी इस कानून में किए गए प्रविधान से आजाद नहीं हो पाए हैं। कहना न होगा कि हत्या जैसे गंभीर अपराध में आरोपित को अपील करने की अनुमति तो है, लेकिन संश्योर में ऐसा कुछ भी नहीं है।

हजारों पुलिसकर्मियों को मिल चुकी सजा

यही कारण है कि संश्योर सजा पाने वाले कर्मचारियों की पदोन्नति और पेंशन पर सीधा असर पड़ रहा है। पंजाब पुलिस रूल के तहत हरियाणा और पंजाब में यह सजा हजारों पुलिस कर्मचारियों के लिए आफत बन चुकी है। पुलिस कप्तान यानी जिले के एसपी अथवा एसएसपी को अधिकार है कि वे अपने अधीन कर्मचारियों को संश्योर की सजा दे सकते हैं।

एडीजीपी ने लिखी चिट्ठी

हरियाणा नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो हरियाणा (एचएसएनसीबी) के प्रमुख व अंबाला रेंज के एडीजीपी श्रीकांत जाधव ने डीजीपी पीके अग्रवाल को चिट्ठी लिखी है। उल्लेखनीय है कि संश्योर की सजा जाने अनजाने में की गई बहुत छोटी गलती पर दी जाती है, जिसकी अपील कर्मचारी नहीं कर सकता। पंजाब पुलिस नियमावली 16.29 (1) के तहत हरियाणा और पंजाब में संश्योर की सजा एसपी देते हैं, जिसका असर छह माह तक रहता है। यदि इस छह माह के दौरान पुलिस कर्मचारी की पदोन्नति आ जाती है, तो इसका असर उसकी प्रमोशन पर पड़ता है।

अपील का कोई प्रावधान नहीं

प्रमोशन पर असर के चलते जूनियर या साथ भर्ती हुए कर्मचारी पदोन्नत होकर अगला रैंक पा लेते हैं और जिनको संश्योर की सजा मिली होती है वे पिछड़ जाते हैं। पुलिस कप्तान द्वारा दी गई यह सजा ठीक है या गलत, इसकी अपील करने का कानून में कोई प्रविधान नहीं है, जबकि पुलिस महकमे में ही विभागीय जांच करके भी किसी कर्मचारी को बर्खास्त (डिसमिस) कर दिया जाए, तो उसे अपील करने का अधिकार है। ऐसे कई मामले हैं, जिनमें कर्मचारी बर्खास्त होने के बाद वरिष्ठ अधिकारी के पास अपील करने के बाद बहाल हो जाते हैं।

यानी कि संश्योर की सजा में भी अपील का प्रविधान होता तो कर्मचारियों को इंसाफ की उम्मीद रहती। एडीजीपी श्रीकांत जाधव ने डीजीपी को लिखी चिट्ठी में लिखा है कि इस एक्ट में संशोधन कर अपील करने योग्य बनाया जाए ताकि कर्मचारी अपनी बात वरिष्ठ अधिकारियों के सामने रख सके।

यह है मामले



केस नंबर वन


पुलिस कर्मी नरेंद्र सिंह को अंबाला एसपी की ओर से 21 अगस्त 2021 को संश्योर की सजा दी थी, जिसका असर 21 फरवरी 2022 तक रहा। लेकिन इस कर्मचारी की 17 वंबर 2021 को पदोन्नति होनी थी, संश्योर की सजा के चलते पिछड़ गया। सिर्फ यही नहीं साढ़े तीन सौ कर्मचारी ऐसे हैं।

केस नंबर दो



यमुनानगर में तैनात अशोक कुमार को 25 अक्टूबर 2021 को संश्योर की सजा दी गई, जिसकी अवधि 25 अप्रैल 2022 तक रही। लेकिन 17 नवंबर को 2021 को इस कर्मचारी की भी पदोन्नति होनी थी, जो संश्योर की सजा के कारण लटक गई। ऐसे करीब 110 कर्मचारी इस सजा के कारण प्रभावित हुए।

केस नंबर तीन



सतबीर सिंह को भी 21 अगस्त 2021 को संश्योर की सजा दी गई, जिसकी पदोन्नति 17 नवंबर 2021 को होनी थी। लेकिन 21 फरवरी 2022 तक संश्योर की सजा के चलते वह पदोन्नति में पिछड़ गया। ऐसे करीब दो सौ कर्मचारी हैं।

Avinash Kumar Singh

A writer by passion | Journalist by profession Loves to explore new things and travel. I Book Lover, Passionate about my work, in love with my family, and dedicated to spreading light.

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