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पेट्रोल – डीजल के बढ़ते दामों को देख सरकार ने लिया बड़ा फैसला, अब पानी से बनेगा ये खास फ्यूल

पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के बीच इसके विकल्पों पर विचार करना जरूरी होता जा रहा है। दुनियाभर के विश्लेषक ऐसा मानते हैं कि पेट्रोल-डीजल से चलने वाली कारों का दौर खत्म हो सकता है। हालांकि इस सवाल पर उनकी राय बंटी हुई है कि ऐसा आखिर कब तक संभव होगा। यह तो हम सभी देख रहे हैं कि हाल के दिनों में इलेक्ट्रिक वाहनों का दबदबा बढ़ा है। लेकिन ईंधन के रूप में पेट्रोल और डीजल के विकल्पों पर भी बात हो रही है।

तेल के आयात पर निर्भरता कम करने के लिए पेट्रोल में मिलाए जाने वाले एथेनॉल के उत्पादन और पॉलिसीज के अलावा भी उपायों पर सोचा जा रहा है। इस बीच आईआईटी , गुवाहाटी पानी से हाइड्रोजन बनाने की तैयारी में है।आईआईटी के शोधकर्ता ऐसा किफायती पदार्थ डेवलप करने में लगे हैं, जो जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़ देगा। इसके लिए सूर्य की रोशनी का इस्तेमाल किया जाता है।

हाइड्रोजन को एक स्वच्छ और अधिक ऊर्जा वाला ईंधन माना जाता है। टीवी 9 हिंदी से बातचीत में तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के केमेस्ट्री डिपार्टमेंट से सेवानिवृत्त जलविज्ञानी प्रो विवेकानंद मिश्र कहते हैं कि एक किलो हाइड्रोजन में नैचुरल गैस से 2.6 गुना ज्यादा एनर्जी होती है। इसका भंडारण किया जा सकता है और जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल किया जा सकता है। हाइड्रोजन को तैयार करना किफायती हो तो यह एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है।

प्रो मिश्र ने बताया कि हाइड्रोजन को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करने की परिकल्पना कोई आज-कल की नहीं है। फ्यूल सेल्स का सिद्धांत 1839 में ही विकसित किया गया था। वर्ष 1841 में एक इंजीनियर जॉन्सटन ने ऐसे इंजन की पेशकश की थी, जो ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के मिश्रण से चलने वाली थी। हालांकि उनकी यह अवधारणा इसलिए परवान नहीं चढ़ पाई, क्योंकि ऑक्सीजन और हाइड्रोजन को तैयार करना काफी महंगा था। जल को ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में तोड़ना तो और भी खर्चीला।

जल से हाइड्रोजन तैयार करने की दिशा में आईआईटी का शोध क्रांतिकारी साबित हो सकता है। आईआईटी, गुवाहाटी कम लागत वाला एक अनूठा पदार्थ विकसित कर रहा है जो सूर्य की रोशनी का उपयोग कर जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विखंडित कर सकता है। जल से हाइड्रोजन उत्पन्न करने के लिए यह पदार्थ विकसित होने पर कार्बन-मुक्त हाइड्रोजन इकोनॉमी की ओर बढ़ा जा सकता है।

आईआईटी की यह रिसर्च स्टडी जर्नल ऑफ फिजिकल केमिस्ट्री लेटर्स में प्रकाशित हुआ है, जिसका प्रकाशन अमेरिकन केमिकल सोसाइटी करती है।रिसर्च टीम के मुताबिक स्वच्छ ऊर्जा विकसित करने में विश्वव्यापी कोशिशों को जीवाश्म ईंधन का भंडार तेजी से घटने के कारण भी बल मिला है। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि जीवाश्म ईंधन पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है।

आईआईटी गुवाहाटी के केमेस्ट्री डिपार्टमेंट के प्रोफेसर मोहम्मद कुरैशी ने कहा, “1839 में एंडमंड बेक्वैरेल द्वार फोटोवोल्टिक प्रभाव की खोज के बाद, सौर ऊर्जा को रासायनिक ईंधन में बदलने की प्रक्रिया ने इसके प्रति वैज्ञानिकों की रूचि जगाई है। सौर ऊर्जा को आज सर्वाधिक स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा माना जाता है।” कुरैशी ने बताया कि फोटो इलेक्ट्रो केमिकल सेल जल जैसे सामान्य और सुरक्षित यौगिकों को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विखंडित करने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करते हैं।

रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले साल दुनियाभर में करीब 8,500 हाइड्रोजन फ्यूल सेल वाहन बिके थे। तमाम बाधाओं और मुश्किलों के बावजूद फ्यूल सेल कार का आइडिया चल रहा है। जनरल मोटर्स ने इलेक्टोवन में इसे आजमाया था। टोयोटा की एक मिराई फ्यूल सेल कार ने हाल ही में महज 5.7 किलो हाइड्रोजन से 1352 किमी का सफर तय किया था।

अब, जबकि पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के बीच एक बार फिर दुनिया का ध्यान हाइड्रोजन की तरफ जा रहा है। कुछ रिपोर्ट्स में ट्रांसपोर्टेशन के लिए हाइड्रोजन के त्वरित इस्तेमाल की सलाह दी गई है। यह पर्यावरण के भी काफी अनुकूल है। हालांकि हाइड्रोजन के स्टोरेज और इस्तेमाल की कुछ चुनौतियां हैं, लेकिन वर्तमान में चल रहा आईआईटी का यह प्रयास सफल होता है तो निकट भविष्य में ईंधन का एक नया और सस्ता विकल्प हमारे सामने होगा।

Avinash Kumar Singh

A writer by passion | Journalist by profession Loves to explore new things and travel. I Book Lover, Passionate about my work, in love with my family, and dedicated to spreading light.

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