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एशिया में हरियाणा के एक किसान के पास है मुर्रा भैंसों की सबसे बड़ी डेयरी, देश विदेश में है मशहूर

आपने हरियाणा में एक कहावत बड़ी मशहूर है कि जिसके घर काली उसके घर दीवाली। काली से अभिप्राय यहां भैंस से हैं और भैंस मुर्रा नस्ल की हों तो उसकी एक अलग ही पहचान है। मुर्रा नस्ल को हरियाणा में काला सोना के नाम से भी जाना जाता है। प्रकृति की मार के आगे जब खेती धोखा दे जाती है तो मुर्रा भैंस ही किसान की तारणहार बनती है, इसलिए मुर्रा नस्ल को किसान का आधी रात का गहना कहा जाता है।

इसी मुर्रा नस्ल ने जींद जिले के गांव बोहतवाला के किसान बलजीत रेडडू की तकदीर ही बदल दी। गांव दालमवाला में उनकी डेयरी में करीब 900 मुर्रा नस्ल की भैंसें है,जिसे एशिया महाद्वीप के सबसे बड़े मुर्रा फार्म का खिताब भी हासिल है। आज मुर्रा नस्ल की बदोलत किसान बलजीत की पहचान विदेशों तक है ।

किसान बलजीत रेडडू बताते हैं कि आज से 13 साल पहले मुर्रा नस्ल पर बात करते- करते  उनकी नस्ल सुधारने का विचार दिमाग में आया। दालमवाला गांव के खेतों में करीब 6 एकड़ जमीन पर आइसोलेशन डेयरी फार्म तैयार किया।

पूरे हरियाणा से करीब एक हजार अच्छी मुर्रा नस्ल की भैंसों के साथ डेयरी शुरू की और उनके सेलेक्शन एंड ग्रेडिंग पर काम शुरू किया। हर साल दूध देने वाली करीब 20 भैंसें बेचते रहें और अच्छी किस्म की मुर्रा भैंस को तव्वजो देते रहे। अब डेयरी फार्म पर 100% मुर्रा नस्ल का उत्तम ब्रांड है।

सभी भैंसों का आगे-पीछे का चार पीढ़ी का रिकॉर्ड रखतें हैं कि मां कितना दूध देती थी और अब बेटी कितना दूध दे रही है। डेयरी की शुरुआत से ही तीन चीजों पर फोकस रखा गया कि मध्यम साइज़ की मुर्रा तैयार करना, ज्यादा दूध का उत्पादन और सालाना ब्यांत।

बुल यानि झोटे की लगातार टेस्टिंग करके अच्छे बुल की नस्ल तैयार की गई।अब डेयरी में सभी भैंस 14 महीने में दोबारा बच्चा पैदा कर देती हैं।  सालाना औसत 8 % फैट है और 40 + प्रोटीन है, दूध में यही चीज देखी जाती है।

मु्र्रा के फीड कन्वर्शन रेशो यानि एफसीआर पर काम किया, जिस पर कोई ज्यादा ध्यान नहीं देता है। आजकल कहते हैं कि इस झोटे की कीमत 12 करोड़ रुपए है, उसे बादाम,सेब व पतासे खिलाते हैं लेकिन यह सब ढकोसला है।

दूध देने के मामले में पशु का साइज़ कोई मायने नहीं रखता है। मध्यम साइज़ का पशु जल्दी बूढ़ा भी नहीं होता और बीमारी की चपेट में भी कम ही आता है। इस बात पर फोकस किया जाएं कि पशु कितना खाकर क्या दूध देता है।

किसान बलजीत ने बताया कि दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए अमेरिका, इंग्लैंड, ब्राजील सहित कई विकसित देशों का दौरा कर वहां की अच्छी खुबियों को अपनाया।  शुरुआत के 10 वर्षों में कम खर्च में रखरखाव और थोड़े चारे में ज्यादा दूध देने वाली मुर्रा तैयार करने का लक्ष्य रखा गया था और इसमें सफलता भी मिली। सिर्फ कटड़ी पैदा करने के लिए एंब्रियो पर काम चल रहा है।

उन्होंने बताया कि फिलहाल भैंसों के अगले थनों का दूध बढ़ाने और फैट बढ़ाने पर काम किया जा रहा है। कई ऐसी भैंसें तैयार हो गई है जिनका अगले थनों का दूध बढ़ रहा है।ऐसी भैंस को नया दूध करने वाले बुल की अलग लिस्ट बनाते हैं और ऐसे बुल के साथ दूसरी भैंस की एआई करवाते हैं।

डेयरी संचालक बलजीत रेडडू ने किसानों को सलाह देते हुए कहा है कि भैंस को अच्छे बुल से नए दूध करवाना चाहिए।कई बार किसान साथी गांव में मौजूद झोटे से नए दूध करवा लेते हैं और जब उसका ब्यांत होता है तो वह 7-8 किलों दूध पर ही रह जाती है।इसलिए किसान इस बात को लेकर जागरूकता दिखाएं तो उनकी जिंदगी बदल सकतीं हैं।

Avinash Kumar Singh

A writer by passion | Journalist by profession Loves to explore new things and travel. I Book Lover, Passionate about my work, in love with my family, and dedicated to spreading light.

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