गंदगी वाली जगह से भरा जा रहा था पीने का पानी, कहीं आप भी तो नहीं पी रहे पैकेज ड्रिंकिंग वाटर

दिल्ली और हरियाणा की सीमा पर पैक्ड ड्रिंकिंग वाटर के नाम से बोतलों में कथित रूप से वह पानी भरा जा रहा है जिसे अनहाइजनिक कंडीशन में तैयार किया जा रहा है। गंदे माहौल में तैयार होने वाला पानी इंफेक्शन और बीमारियों का भंडार हो सकता है। सीएम फ्लाइंग की टीम ने 9 नवंबर को अवैध रूप से चल रही एक पानी की फैक्ट्री का खुलासा किया था। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने दरियापुर और देवरखाना से दो अलग-अलग फैक्ट्रियों में दबिश देकर सैंपल लिए है। जिसकी रिपोर्ट आने में भी करीब 1 महीने का समय लग जाएगा।

जानकारी के अनुसार भले ही विभिन्न एजेंसियां यहां बॉर्डर पर चल रहे पैक्ड पानी के खेल की तरफ ध्यान न दें, लेकिन लोगों की आंखों में धूल झोंकी जा रही है।

निर्माताओं ने कानूनी दांव पेंच से बचने के लिए बोतलों पर मिनरल वाटर लिखने की जगह छोटे से स्थान में पैक ड्रिंकिंग वाटर लिखकर अपना बचाव किया हैं। जबकि इनका प्रयोग करने वाले लोगों को यह पता नहीं होता है कि यह केवल साधारण पानी ही है। जिसकी वे मोटी कीमत दे रहे हैं।

इस खेल में करीब 6 फैक्ट्रियां लगी है। जो झज्जर में प्लांट स्थापित कर पास के गुड़गांव और दिल्ली में पानी की आपूर्ति कर रही है। टीम ने दरियापुर की दीपिका मिनरल्स व गुरुग्राम रोड की ब्लू मून फैक्ट्री के यहां से सैंपल लिए है। जबकि दो अन्य जगह से शिकायत मिली थी। वहां टीम को काम बंद हुआ मिला।

वेस्ट पानी के लिए नहीं है ट्रीटमेंट प्लांट

किसी भी प्रकार के इंडस्ट्रियल इस्तेमाल होने वाले पानी को सीधा जमीन पर नहीं छोड़ा जा सकता है लेकिन यहां प्लांटों से निकलने वाला और बोतलों के वेस्ट पानी को अलग-अलग टैंकों में स्टोर करने के बाद उसे यूं ही बहा दिया जाता है। जबकि इस तरह के पानी का विशेष रूप से ट्रीटमेंट होना चाहिए और उसके बाद उसको किसी दूसरे प्रयोग में लेना चाहिए। लेकिन प्रदूषण विभाग की तरफ से इन मामलों में कोई गंभीरता नहीं बरती जा रही है।

ग्रामीणों ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों के अंदर यहां पानी के कई प्लांट लगे हैं। इन सभी प्लांटों के माध्यम से प्रतिदिन कई टन पानी जमीन से निकाला जा रहा है। इसी पानी को प्रोसेस करने के बाद चमकीले स्टीकर वाली बोतलों में भरकर बाहर भेजा जा रहा है। जिससे आने वाले दिनों में यहां भूमिगत जलस्तर के और गिरने की शिकायत बढ़ेगी।

पानी भरने के लिए लेनी होती है सेंट्रल गवर्नमेंट की परमिशन

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि आमतौर पर पानी भरने वाले लोगों को सेंट्रल गवर्नमेंट से मंजूरी लेनी होती है। ऐसे मामलों में सेंट्रल ग्राउंड वॉटर अथॉरिटी ही मंजूरी देती है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग समय-समय पर सैंपल भरता है और यदि यह सैंपल फेल आते हैं तो इस मामले में कोर्ट केस और जुर्माने दो तरह की कार्यवाही होती है।

बिना लाइसेंस के पकड़ी थी फैक्ट्री

लोहट में सीएम फ्लाइंग की ओर से जो फैक्ट्री पकड़ी गई थी। उसमें पीछे से काम चल रहा था। आसपास का माहौल भी काफी खराब था। टैंकों में काई जमी हुई थी। जहां पर पानी की बोतलें भरी जा रही थी उसी के साथ में प्लास्टिक में कबाड़ जमा था। इस फैक्टरी पर मौजूदा समय में सील लगी हुई है और स्टाफ अब यहां से जाने की तैयारी कर रहा है।

ट्रेंड व्यक्ति की जगह मजदूर भरते हैं पानी

सूत्रों के अनुसार पानी भरने के काम में किसी ट्रेंड व्यक्ति की जगह लेबर किस्म के प्रवासी मजदूरों को रखा जाता है। जो स्वच्छता का ध्यान भी नहीं रखते हैं। ऐसी स्थिति में अनहाइजनिक कंडीशन में भरे जाने वाले पानी के कारण बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ सकता है।

झज्जर स्वास्थ्य विभाग, डेजिग्नेटेड ऑफिसर राजेंद्र सिंह ने कहा कि बोतलों में बिकने वाले पानी को लेकर उपभोक्ताओं को खुद ही जागरूक होना होगा। पैक्ड पानी और मिनरल वाटर में बहुत अंतर होता है। आमतौर पर लोग पैक्ड पानी को मिनरल्स युक्त बेहतर पानी समझकर खरीदते है।

पैक्ड पानी पर प्रॉपर सील के साथ-साथ उसका बैच नंबर और निर्माण करने वाली कंपनी का पता भी होना अनिवार्य है। वहीं मिनरल वाटर के मामले में बोतल पर पानी के अंदर उपलब्ध मिनरल की मात्रा भी लिखी होनी चाहिए।

Avinash Kumar Singh

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