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हरियाणा के इस गाँव के MBA सरपंच ने बदली सूरत , हर साल बजाता है 25 लाख लीटर बारिश का पानी

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पानी जीवन की सबसे अहम जरूरतों में से एक है। लेकिन जिस तरह से देश में पानी का संकट बढ़ रहा है, उसे देखते हुए प्रत्येक नागरिक को अपने स्तर पर पानी बचाने की कोशिश करनी चाहिए। कई इलाकों में तो भूजल स्तर बहुत ज्यादा नीचे चला गया है। ऐसे में, बारिश का पानी और पानी के स्त्रोतों को सहेजने की बहुत जरूरत है। ‘रेन वॉटर हार्वेस्टिंग’ (वर्षा जल संचयन) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे पानी की किल्लत से निजात मिल सकती है।

यह तरीका न सिर्फ सूखाग्रस्त इलाकों के लिए बल्कि उन इलाकों के लिए भी जरूरी है, जहाँ बारिश अच्छी मात्रा में होती है। क्योंकि अगर देश के हर एक कोने में बारिश के पानी को संरक्षित किया जाएगा तो हर एक इलाके को इसका फायदा मिलेगा। बारिश के पानी के संचयन के महत्व को समझते हुए, हरियाणा की ‘भिडूकी ग्राम पंचायत’ ने एक नहीं बल्कि चार अलग-अलग स्थानों पर ‘रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम’ बनाए हैं। लगभग 18 हजार की आबादी वाले इस गाँव में, अब न तो जल-भराव होता है और न ही किसानों को पानी की समस्या।

पलवल जिले के भिडूकी गाँव में कुछ साल पहले तक, बारिश के मौसम में लोगों को काफी परेशानी होती थी। गाँव में पानी की निकासी नहीं होने की वजह से, जगह-जगह जल भराव हो जाता था। खासकर कि गाँव के सरकारी स्कूल में, जहाँ बारिश के मौसम में शिक्षकों और छात्राओं को बहुत मुसीबत उठानी पड़ती थी। गाँव के 32 वर्षीय सरपंच, सत्यदेव गौतम कहते हैं, “सच कहूँ तो ‘रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम’ गाँव में बनवाने का विचार स्कूल से ही आया। एक दिन स्कूल के दौरे के समय शिक्षकों ने मुझसे इस परेशानी के बारे में बात की और कहा कि ग्राम पंचायत को इस विषय पर कुछ करना चाहिए।”

स्कूल की बिल्डिंग काफी पुरानी है और इसमें कोई बदलाव करना, पंचायत के लिए संभव नहीं था। बीटेक तथा एमबीए कर चुके गौतम कहते हैं कि पहले वह गुरुग्राम में एक कंपनी में नौकरी करते थे। वहाँ पर भी जल-भराव की समस्या थी, जिसे हल करने के लिए कंपनी में ‘रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम’ बनवाया गया था। उन्होंने आगे कहा, “मुझे यह तो समझ में आ गया कि हम इस तरह से परेशानी तो हल कर सकते हैं लेकिन, तकनीक को थोड़ा और समझने के लिए मैं एक बार फिर, उस कंपनी में गया और वहाँ जाकर इसके बारे में समझा। इसके बाद हमने स्कूल में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का काम शुरू कराया।”

स्कूल के प्रिंसिपल हरी सिंह ने बताया, “स्कूल काफी पुराना है। बाकी समय तो ठीक है लेकिन, बारिश के मौसम में समस्या काफी बढ़ जाती थी। पूरे स्कूल में पानी भर जाता था लेकिन, अब ऐसा नहीं हो रहा है। यह सिस्टम बनने से काफी सुविधा हुई है। गाँव की समस्याओं को लेकर ग्राम पंचायत काफी एक्टिव है।”



दूर हुई जलभराव की समस्या

सबसे पहले स्कूल की छत के पानी को इकट्ठा करने के लिए पाइप लगाई गई। इसके बाद, सड़क और स्कूल के बाकी जलभराव वाले स्थानों को नालियों के जरिए, एक-दूसरे से जोड़ा गया। स्कूल के एक हिस्से में करीब आठ फीट चौड़ाई और दस फीट लंबाई की तीन अंडर ग्राउंड टंकियां बनवाई गयीं। ये तीनों टंकियां एक दूसरे से जुडी हुई हैं। पहली दो टंकियों में बारिश का पानी फिल्टर होता है। वहीं तीसरी टंकी में 120 मीटर गहरा, एक बोरवेल बनाया गया है। इस बोरवेल के जरिए, पूरे पानी को जमीन में भेज दिया जाता है।

स्कूल में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के बाद, जलभराव की समस्या एकदम खत्म हो गयी। गौतम कहते हैं कि स्कूल में उन्हें काफी अच्छा नतीजा मिला। यहाँ पर सालभर में वह 11 लाख लीटर से ज्यादा बारिश का पानी सहेजने में कामयाब हो जाते हैं। इसलिए, उन्होंने गाँव के दूसरे हिस्सों में भी देखना शुरू किया कि जलभराव की परेशानी और किन इलाकों में है। वह बताते हैं, “गाँव की वाल्मीकि बस्ती में 40 घर हैं और यहाँ रहने वाले लोगों ने ग्राम पंचायत को बताया कि बारिश में उनके घरों के सामने पानी भरने से, उन्हें भी आने-जाने में काफी परेशानी होती हैं। इसलिए, हमने वहाँ भी इसी प्रक्रिया से रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया। हालांकि, बोरवेल की गहराई सभी जगह अलग-अलग है।”

वाल्मीकि बस्ती के अलावा, गाँव के उप स्वास्थ्य केंद्र और खेल परिसर में भी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाए गए हैं। साथ ही, हर एक सिस्टम में फ़िल्टर लगवाए गए हैं ताकि जमीन में जाने वाले पानी में कोई अशुद्धि न हो। इससे भूजल का खारापन कम होगा और पानी मीठा होगा। इन चारों रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से भिडूकी गाँव, सालाना लगभग 25 लाख लीटर बारिश के पानी को सहेजकर, भूजल स्तर को बढ़ाने में योगदान दे रहा है।

खेतों को जोड़ा गाँव के जोहड़ से:



सबसे पहले ग्राम पंचायत ने गाँव में जोहड़ (जल-स्त्रोत) के लिए, आवंटित जमीन को अवैध कब्जों से छुड़ाया और फिर इसकी साफ-सफाई करवा कर तालाब खुदवाया है। बारिश के मौसम में यह तालाब पानी से भर जाता है और गाँव वालों के बहुत काम आता है। साथ ही, इस तालाब को सीवरेज लाइन के जरिए खेतों से जोड़ा गया है। इससे किसान, जरूरत पड़ने पर सीवरेज लाइन के जरिए अपने खेतों की सिंचाई के लिए पानी ले सकते हैं। गौतम बताते हैं, “गाँव के खेतों में करीब दो किलोमीटर तक हर 200 से 300 मीटर की दूरी पर छह फीट चौड़ाई और दस फीट लंबाई के गड्ढों का निर्माण करवाया है। इन गड्ढ़ों से जोहड़ का सिवरेज पाइप जुड़ा हुआ है। ऐसे में जब भी किसानों को पानी की जरूरत पड़ती है, किसान इन गड्ढों में पाइप डाल कर खेतों की सिंचाई कर लेते हैं।”

वैसे तो भिडूकी गाँव में सिंचाई के लिए नहर का पानी आता है लेकिन, अगर कभी यह पानी मिलने में देरी हो जाए तो भी किसानों को फसल लगाने के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता है। गौतम कहते हैं, “रेन वॉटर हार्वेस्टिंग एक ऐसा कारगर तरीका है, जिससे शहरों और गाँवों में घटते जलस्तर को रोका जा सकता है और काफी हद तक पानी को बचाया जा सकता है। लेकिन, जरूरत है तो इस मुहिम को बड़े स्तर पर अपनाने की।”

और अंत में वह कहते हैं, “रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम ऐसा तरीका है जो न सिर्फ आज हमारे गाँव की समस्या को हल कर रहा है बल्कि भविष्य के लिए भी काम कर रहा है। अब कम से कम हम निश्चिन्त है कि हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए हमने कुछ किया।”

भिडूकी ग्राम पंचायत की इस पहल की सराहना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में भी की है। रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के अलावा और भी कई पहलों में भिडूकी गाँव एक बेहतर गाँव होने की मिसाल पेश कर रहा है। उम्मीद है कि देश के अन्य गाँवों में भी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग पर काम किया जाए ताकि देश के जल-संकट को काफी हद तक कम किया जा सके।

Avinash Kumar Singh
Avinash Kumar Singh
A writer by passion | Journalist by profession Loves to explore new things and travel. I Book Lover, Passionate about my work, in love with my family, and dedicated to spreading light.

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