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हरियाणा में असल जिंदगी में दोहराई गई अमिताभ बच्चन की इस फैमस मूवी की कहानी

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अमिताभ बच्चन फिल्म जगत के एक जानें माने सितारे हैं, उनकी हर एक फिल्म दर्शकों को ख़ूब पसंद आती हैं। बच्चें हों, जवान हो या फिर बुजर्ग हों सबके ही बीच में उनकी फिल्में बहुत चर्चित रहतीं हैं। इन्हीं बहुत सी चर्चित फिल्मों में से एक हैं साल 2003 में आई फिल्म बागबान। इस फ़िल्म बच्चों से ज्यादा माता पिता से प्यार मिला था।

क्योंकि इस फिल्म में माता पिता की दशा दिखाई गई थी कि बच्चें उनके बुढ़ापे में उनकी कैसी देखभाल करते हैं। उनको एक साथ रखने की बजाय एक दूसरे से अलग कर देते हैं, उनके बेटे और बहू उनको प्रताडि़त करते हैं । खेर ये तो एक फिल्म थीं, लेकिन इस फिल्म की पूरी कहानी असल जिंदगी में भी दोहराई गई है।

दरअसल हरियाणा के पानीपत जिले में कुछ समय पहले ऐसा ही एक मामला सामने आया था। जिसमें पिता ने बागबान फिल्म के अमिताभ बच्चन की तरह अपने बेटे को माफ़ नहीं किया। इतना ही नहीं अपने बेटे को घर से बाहर निकलने के लिए जिलाधीश के पास याचिका भी दायर करा दी, जहां पर उसे जीत मिली। उस लाचार पिता के बेटे और बहू को न्यायालय ने घर से बेदखल कर दिया।

जानकारी के लिए बता दें कि वह लाचार सतकरतार कालोनी के रहने वाले पिता मोहर सिंह थे,वह बिजली निगम कार्यालय से सेवानिवृत्त हुए। वह बिजली निगम में एक चतुर्थ श्रेणी के कर्मी थे। उन्होंने अपनी कमाई की पाई पाई जोड़ के 230 गज का एक मकान बनाया था। इसके साथ ही उन्होंने अपने दोनों लड़कों और लड़कियों की शादी की।

इतना सब कुछ करनें के बाबजूद भी उनका बड़ा बेटा तो घर से अलग होकर चला गया। लेकिन छोटा बेटा घर हड़पने के चक्कर में उन्हें प्रताडि़त करता था, उनके और उनकी पत्नी के साथ गाली गलोच करता था। बहू भी कम नहीं थीं वह भी घर में तोड़ फोड़ करती थी। जब मोहर सिंह से ये सब सहा नहीं गया तो उन्होंने अपने बहू और बेटे शिकायत DC को कर दी।

जिसके बाद कोर्ट में मनोहर सिंह के बेटे और बहू के खिलाफ़ मुकदमा दर्ज किया गया और उन्हें घर से बेदखल कर दिया गया। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि
माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत वृद्धजन को कुछ अधिकार मिलते हैं।

जोकि निम्लिखित है –

1- अगर बुजुर्गों के पास आय का जरिया नहीं है तो वयस्क बच्चों से भरण पोषण प्राप्त कर सकते हैं।

2- अगर संपत्ति पर उनका स्वामित्व है तो अपने घर से बच्चों को निकाल सकते हैं।

3- दोषी सिद्ध होने पर पांच हजार रुपये जुर्माना, तीन महीने की सजा हो सकती है।

4- भरण पोषण के लिए दस हजार रुपये प्रति माह तक देने का आदेश दिया जा सकता है।

Avinash Kumar Singh
Avinash Kumar Singh
A writer by passion | Journalist by profession Loves to explore new things and travel. I Book Lover, Passionate about my work, in love with my family, and dedicated to spreading light.

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